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ऋग्वेदः
ऋक् संहि‍ता
वैदि‍क वाड़्मय में ऋक् संहि‍ता का स्‍थान सर्वप्रथम है । ऋक् संहि‍ता के मंत्रों को ऋचा कहा जाता है । वि‍भि‍न्‍न देवताओं की अर्चना की साधनभूत ऋचायें इस संहि‍ता में प्राप्‍त होती हैं । यज्ञ के समय 'होता'नामक ऋत्‍वि‍क् इन ऋ चाओं का उच्‍चारण करके देवताओं का आवाहन करते हुये अर्चना करता है । ऋ ग्‍वेद की २१ शाखाओं का उल्‍लेख प्राप्‍त होता है । सम्‍प्रति शाकल-शाखा की संहि‍ता ही प्राप्‍त होती है । ऋक् संहि‍ता की वि‍षय-वस्‍तु का वि‍भाजन दो प्रकार से होता है-

(क) अष्‍टक क्रम -   अष्‍टक क्रम के अनुसार सम्‍पूर्ण ग्रंथ आठ अष्‍टकों में वि‍भक्‍त है। प्रत्‍येक अष्‍टक में आठ-आठ अध्‍याय हैं । प्रत्‍येक अध्‍याय वर्गों में वि‍भक्‍त है तथा वर्गों में मंत्र समूह हैं । यह वि‍भाजन प्रचलि‍त नहीं है।

(ख) मण्‍डल क्रम -    मण्‍डल क्रम के अनुसार ऋग्‍वेद में दस मण्‍डल हैं । प्रत्‍येक  मण्‍डल अनुवाकों में एवं अनुवाक पुन: सूक्‍तों में वि‍भक्‍त हैं । सूक्‍तों में ऋचायें अथवा मंत्र हैं ।यह वि‍भाजन  अधि‍क प्रचलन में हैं ।

ऋग्‍वेद के द्वि‍तीय से लेकर सप्‍तम मण्‍डल    तक का  अंश प्राचीनतम माना गया है । इन मण्‍डलों को वंश मण्‍डल भी कहा जाता है । भाषा , छंद , दार्शनि‍क  कल्‍प नाओं के कारण दशम  मण्‍डल अन्‍यमण्‍डलों की अपेक्षा अर्वाचीन है । वि‍षय-वस्‍तु के आधार पर ऋग्‍वेद संहि‍ता में मुख्‍य रूप से तीन प्रकार के सूक्‍त प्राप्‍त होतें हैं -

(क) धार्मिक सूक्‍त -   धार्मिक सूक्‍तों में देवताओं को परमात्‍मा के वि‍वि‍ध प्राकृति‍क एवं आध्‍यात्‍मि‍क रूपों में देखा गया है तथा उनकी स्‍तुति‍ की गयी है । प्रमुख स्‍तुत्‍य देवता अग्‍नि‍ , इन्‍द्र , सोम , वि‍ष्‍णु , पृथ्‍वी , नदी , वरूण , उषस् , सूर्य , अश्र्वि‍नी आदि‍ हैं ।

(ख) लौकि‍क सूक्‍त -   लौकि‍क सूक्‍तों में ऋग्‍वेद युगीन समाज के दर्शन होते है । इनमें औषधि‍ वि‍ज्ञान , राजशास्‍त्र , वि‍वाह , दान-स्‍तुति‍ , अक्ष-सूक्‍तादि‍ महत्‍वपूर्ण हैं ।

(ग) दार्शनि‍क सूक्‍त-   ऋक् संहि‍ता में सृष्‍टि‍ की पूर्वावस्‍था ,जगत् के आधार के रूप में ऋत का वर्णन , वाक् के रूप में परमशक्‍ति‍ द्वारा अपनी क्षम ताओं का वर्णन प्राप्‍त होताहै ।

दार्शनि‍क वि‍वेच न मुख्‍य त: ऋग्‍वेद के दशम् मण्‍डल में प्राप्‍त होते हैं । पुरूष सूक्‍त , नासदीय सूक्‍त, वाक् सूक्‍त, हि‍रण्‍यगर्भादि‍ सूक्‍तप्रमुख  दा र्शनि‍क सूक्‍तहैं । 

उपयुक्त  सूक्‍तों के अति‍रि‍क्‍त ऋक् संहि‍ता में संवाद सूक्‍त भी प्राइज़ होते हैं । संवाद सूक्‍तोंमें वि‍श्र्वामि‍त्र-नदीसंवाद , यम -यमी संवाद, पुरू रवा-उर्वशीसंवाद तथा सरमा-पणि‍ संवादादि‍ प्रमुख हैं । संवाद सूक्‍तों को वि‍द्वान् नाटक-साहि‍त्‍य का बीज मानते हैं ।

ऋग्‍वेद-संहि‍ता में धार्मि‍क वि‍षय-सामग्री का बाहुल्‍य होने पर भी तत्‍कालीन मानव के सामाजि‍क , राजनैति‍क, आर्थिक और सांस्‍कृति‍क जीवन तथा दार्शनि‍क, आध्‍यात्‍मि‍क चि‍न्‍तन का वि‍वरण प्राप्‍त होता है ।

ऋग्‍वेद पर समय-समय पर वि‍भि‍न्‍न वि‍द्वानों  द्वारा भाष्‍य लि‍खे गये । जि‍नमें से आचार्य सायण, स्‍कन्‍दस्‍वामी, माधवभट्ट प्रमुख भाष्‍यकार हैं । कालान्‍तर में वि‍ल्‍सन, मैक्‍समूलर, लुडवि‍ग, ग्रि‍फि‍थ, मैक्डॉनल, ओल्‍डनबर्ग, ग्रासमान, लुईरेनु आदि‍ पाश्‍चात्‍य वि‍द्वानों ने भी भारतीय वि‍द्वानों के भाष्‍यों को आधार बनाकर ऋग्‍वेद का संपादन, अनुवाद एवं व्‍याख्‍या की ।

   
 
 
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