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करवा चौथ पूजन विधि |
करवा चौथ की पूजा में भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा का पूजन करने का विधान है। इसके लिए सर्वप्रथम बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर सभी देवों को स्थापित करें। अब एक पटरे पर जल का लोटा रखें आैर बायना निकालने के लिए मिट्टी का करवा रखें। करवे के ढक्कन में चीनी व रुपये रखें। अब करवे और बायने पर रोली से स्वास्तिक बनायें। अब सुख सौभाग्य की कामना करते हुए इन देवों का स्मरण करें और करने सहित बायने पर जल, चावल और गुड़ चढ़ायें। अब करवे पर तेरह बार रोली से टीका करें आैर रोली चावल छिडकें। इसके बाद इसके बाद हाथ में तेरह दाने गेहूं लेकर करवा चौथ की व्रत कथा का श्रवण करें। अंत में करवे को प्रणाम करके बायना करवा सहित सास या परिवार की किसी बड़ी महिला देकर चरण स्पर्श कर आर्शिवाद ग्रहण करें।
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करवा चौथ व्रत कथा |
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी| सेठानी के सहित उसकी बहुओ और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था | रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहिन से भोजन के लिए कहा | इस पर बहिन ने उतर दिया - भाई! अभी चाँद नहीं निकला है, उसके निकलने पर अरग देकर भोजन करुँगी| बहिन की बात सुनकर भाइयो ने क्या काम किया कि नगर से बहार जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमे से प्रकाश दिखाते हुए उन्होंने बहिन से कहा - बहिन! चाँद निकल आया है अरग देकर भोजन कर लो | यह सुन उसने अपनी भाभियो से कहा कि आओ तुम भी चन्द्रमा को अरग दे लो, परन्तु वे इस काण्ड को जानती थी उन्होंने कहा बाई जी! अभी चाँद नहीं निकला, आपके भाई आप से धोका करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे है | भाभियों कि बात सुनकर भी उसने कुछ ध्यान न दिया व भाइयो द्वारा दिखाए प्रकाश को ही अरग देकर भोजन कर लिया | इस प्रकार व्रत भंग करने से श्री गणेश जी उस पर अप्रशन हो गए | इसके बाद उसका पति शक्त बीमार हो गया और जो कुछ घर में था उसकी बीमारी में लग गया | जब उसे अपने किये दोषों का पता लगा तो उसने पशचायताप किया गणेश जी की प्रार्थना करते हुए विधि विधान से पुन: चतुर्थी का व्रत करने आरम्भ कर दिया श्रद्धानुसार सबका आदर करते हुए सबसे आशीर्वाद ग्रहण करने मे ही मन को लगा दिया |
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इस प्रकार उश्के श्रद्धा भक्ति सहित कर्म को देखकर भगवन गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवन दान देकर उसे आरोग्य करने के पशचात धन - सम्पति से युक्त कर दिया | इस प्रकार जो कोई छल-कपट को त्याग कर श्रद्धा- भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेगा वे सब प्रकार से सुखी होते हुए कलेशो से मुक्त हो जायेगा |
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